बढ़ती आबादी से कैसे मिले आज़ादी?
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विस्कांसिन-मैडिसन विश्वविद्यालय, चीन के प्रोफेसर यी फूक्सियन ने अभी हाल में दावा किया कि चीन की आबादी
भारत से कम है अर्थात् अब भारत दुनिया का सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है।
प्रोफेसर फूक्सियन के मुताबिक चीन की जनसंख्या वर्तमान में 129 करोड़ से अधिक नहीं
है जबकि भारत की जनसंख्या 132 करोड़ है। फूक्सियन चीन सरकार के दावे को भी नकारते
हैं। उनके अनुसार चीन सरकार का दावा कि उनके देश की जनसंख्या 138 करोड़ के आसपास
है, बिल्कुल गलत है। अगर यी के दावों को नकार भी दें तो
आबादी के मामले में 2025 तक भारत, चीन से आगे निकल जाएगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि 2050 तक भारत की जनसंख्या 170 करोड़ तक
पहुंच जाएगी।
जब भारत आजाद हुआ उस समय देश की आबादी
35-36 करोड़ के बीच थी पर आज यह बढ़कर 130 करोड़ के आसपास पहुंच गई है। आबादी
पढ़ने से खर्चा बढ़ता है। सीमित संसाधन में बढ़ती जनसंख्या का बोझ उठा पाना
मुश्किल होता है। जब इसमें गैप ज्यादा हो जाता है तो समाज में तमाम तरह की
विसंगतियां पैदा होती हैं। अपराध बढ़ते हैं। भुखमरी बढ़ती है। बेरोजगारी बढ़ती है।
तमाम वर्तमान समस्याएं बढ़ती आबादी के साइड इफेक्ट हैं।
आबादी रोकने के जो भी सरकारी उपाय अभी
तक किये गए हैं वो नाकाफी हैं। ज्यादातर परिवार नियोजन की योजनाएं जरूरतमंदों तक
नहीं पहुंच पाती। हालांकि शहरी आबादी और पढ़ा लिखा वर्ग एक या दो बच्चों तक सीमित
हो गया है पर आज भी 70 प्रतिशत ग्रामीण एवं पिछड़े इलाकों में रहने वाले लोगों में
जागरूकता का अभाव है। टेलीविजन, अखबार, रेडियो के माध्यम से फैलाया जा रहा परिवार नियोजन का संदेश पिछड़े इलाकों
तक नहीं पहुंच पा रहा है।
जागरूकता के अभाव के अलावा बढ़ती
स्वास्थ्य सुविधाओं की वजह से मृत्युदर में कमी आई है। जन्मदर के अनुपात में
मृत्युदर में कमी भी बढ़ती जनसंख्या का एक कारण है। आज प्रति घंटे मृत्युदर 1099
व्यक्तियों की है जबकि जन्मदर 3080 बच्चों की है। अर्थात् 2000 लोग प्रति घंटे बढ़
रहे हैं।
थोड़ी राहत देने वाली बात यह है कि
जनसंख्या वृद्धिदर में कमी आई है। वर्ष 1991 की गणना में आबादी में 23.87 प्रतिशत
की वृद्धि देखी गई थी,2001 में 21.54 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई, जबकि वर्ष 2011
की जनगणना के अनुसार बीते एक दशक में आबादी 17.64 फीसदी बढ़ी। इस तरह जनसंख्या
वृद्धि दर में निरंतर गिरावट दर्ज की गई है। बीते एक दशक में वृद्धि दर में 3.90
फीसदी की कमी दर्ज की गई है।
दुख की बात यह है कि खेती की तरफ कोई
आकर्षण नहीं होने से युवा शहरों की तरफ पलायन कर रहा है। खेत की जोत कम हो रही है।
नित नए शहर व सड़कें बनते जाने से कृषि योग्य भूमि में भी कमी आई है। कुल मिलाकर
70 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के लिए कृषि अब कोई पेशा नहीं रह गई है। रोजगार के लिए
शहरों की तरफ पलायन बढ़ रहा है। पुराने शहरों पर बोझ बढ़ रहा है। जिस हिसाब से
आबादी बढ़ रही है उस लिहाज से रोजगार के अवसर नहीं के बराबर हैं। बढ़ती शहरी आबादी
न सिर्फ शहरों पर बोझ है बल्कि बढ़ते अपराध के लिए भी जिम्मेदार है। गरीबी, भुखमरी, कुपोषण बढ़ती आबादी की वजह से ही है।
जनसंख्या पर नियंत्रण रखते हुए समता
मूलक विकास किसी भी सरकार का मूलधर्म होना चाहिए। सरकारों ने जनसंख्या रोकने की जो
योजनाएं चलाईं उससे कुछ रंग जरूर आया है। लोग भी अब काफी जागरूक हो गए हैं।
साक्षरता दर 74 प्रतिशत से ऊपर है। पर हर समय बढ़ती जनसंख्या का रोना, रोना हमारी दूरदर्शिता को नहीं दर्शाता है। अगर किसी देश की आबादी ज्यादा
है तो सबके लिए बुनियादी संसाधनों का इंतजाम करना, सबके लिए
शिक्षा की व्यवस्था करना, सबको रोजगार के अवसर उपलब्ध करना,
ज्यादा से ज्यादा युवा आबादी को देश के विकास में जोड़ना-यह सब किसी
भी सरकार का मूलकर्म होना चाहिए था पर आजादी के बाद कई सकारात्मक कद उठाए गए पर
ज्यादा से ज्यादा युवा आबादी को रचनात्मक कार्यों से जोड़ने का जो सबसे महत्वपूर्ण
काम होना चाहिए था हाशिये पर ही रहा।
आज भारत देश युवा देश है। आज 130 करोड़
आबादी में से 60 प्रतिशत यानी करीब 80 करोड़ युवा हैं। युवा का मतलब कोई देश सबसे
अधिक शक्तिशाली है। सबसे अधिक ऊर्जावान है। पर हमारी सरकारों ने इस ऊर्जा को सही
जगह लगाने का कोई ठोस इंतजाम नहीं किया। देश की आज ज्यादातर युवा आबादी दिग्भ्रमित
है, बेरोजगार है। पुराने रोजगार, पुस्तैनी
पेशे धीरे-धीरे बंद हो गए, रोजगार के नए अवसर नहीं खोजे गए।
योग्यता व क्षमता के अनुसार अगर कंस्ट्रक्टिव कामों में आज के युवा वर्ग को लगा
दिया जाता तो देश आज डेवलपमेंट की नई ऊंचाई छू रहा होता।

